सोम तीर्थ: एक प्राचीन धार्मिक स्थल

सोम तीर्थ: एक प्राचीन धार्मिक स्थल

यह तीर्थ, जिसे सोम तीर्थ के नाम से जाना जाता है, कुरुक्षेत्र से लगभग 25 कि.मी. की दूरी पर सैंसा नामक ग्राम में स्थित है। इस तीर्थ का वर्णन महाभारत, वामन पुराण, ब्रह्म पुराण, और पद्म पुराण में मिलता है। वामन पुराण में इसे सोम (चन्द्र) देव से सम्बंधित बताया गया है। दक्ष प्रजापति के श्रापवश सोमदेव भयंकर राज्यक्षमा से पीड़ित हो गए थे। तत्पश्चात देवताओं के आग्रह पर सोम ने इस स्थान पर उग्र तप द्वारा स्वयं को उस भीषण व्याधि से मुक्त कर लिया था।

पौराणिक कथा

सोमदेव का श्राप

दक्ष प्रजापति के श्रापवश, सोमदेव भयंकर राज्यक्षमा से पीड़ित हो गए। इस व्याधि ने सोमदेव को अत्यंत दुर्बल और कष्ट में डाल दिया था। देवताओं ने उनकी सहायता के लिए दक्ष प्रजापति से प्रार्थना की। दक्ष ने सोमदेव को इस तीर्थ पर उग्र तपस्या करने का आदेश दिया।

सोमदेव की तपस्या

सोमदेव ने इस तीर्थ पर अत्यंत कठिन तपस्या की। उन्होंने यहाँ पर ध्यान और साधना द्वारा स्वयं को उस व्याधि से मुक्त किया। वामन पुराण में वर्णन है कि इस तीर्थ पर स्नान और पूजा करने से राजसूय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है और व्यक्ति सभी रोगों और दोषों से मुक्त होकर सोमलोक को प्राप्त करता है।

ततो गच्छेत् विप्रेन्द्राः सोमतीर्थमनुत्तमम्।
यत्र सोमस्त्पस्तप्त्वा व्याधिमुक्तः अभवत् पुरा।
तत्र सोमेश्वरं दृष्ट्वा स्नात्वा तीर्थवरे शुभे।
राजसूयस्य यज्ञस्य फलं प्राप्नोति मानव:।
व्याधिभिश्च विनिर्मुक्तः सर्वदोषविवर्जित:।
सोमलोकमवाप्नोति तत्रैव रमते चिरम्।
(वामन पुराण 34/33-35)

सोमेश्वर का पूजन

सोमतीर्थ पर स्थित सोमेश्वर का दर्शन और पूजन करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त करता है। यह तीर्थ समस्त रोग, शोक, और दोष से मुक्ति दिलाता है और भक्त को सोमलोक में चिरकाल तक आनंदपूर्वक निवास करने का वरदान देता है।

महाभारत में सोम तीर्थ का वर्णन

वन पर्व में वर्णन

महाभारत के वन पर्व के 83 वें अध्याय में सोम तीर्थ का वर्णन मिलता है। यहाँ बताया गया है कि इस तीर्थ में स्नान करने से व्यक्ति को सोमलोक की प्राप्ति होती है।

ततो गच्छेत् नरश्रेष्ठ सोमतीर्थमनुत्तमम्।
तत्र स्नात्वा नरो राजन् सोमलोकमवाप्नुयात् ।।
(महाभारत, वन पर्व, 83/114-115)

जयन्ती में स्थित सोम तीर्थ

महाभारत में वर्णित एक अन्य सोम तीर्थ जयन्ती (वर्तमान जींद) में स्थित है। यहाँ भी इस तीर्थ का सेवन करने वाले व्यक्ति को राजसूय यज्ञ के फल की प्राप्ति होती है, जो वामन पुराण में वर्णित फल विशेष से समानता रखता है।

ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण में सोम तीर्थ

ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण में भी सोम तीर्थ का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह तीर्थ सोम देव की तपस्या और व्याधि मुक्ति की कथा को संदर्भित करता है। इन पुराणों में इस तीर्थ के धार्मिक महत्व और पूजा के विधि-विधान का उल्लेख मिलता है।

सोम तीर्थ का भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्व

सरस्वती नदी के तट पर स्थित

सोम तीर्थ सरस्वती नदी के तट पर स्थित है। यह नदी प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व की धारा रही है। सरस्वती नदी का पवित्र जल इस तीर्थ की पवित्रता और धार्मिक महत्व को और भी बढ़ाता है।

प्राचीन काल से मध्य काल तक की संस्कृतियाँ

सोम तीर्थ के आस-पास के क्षेत्र से उत्तर हड़प्पा काल से लेकर मध्य काल तक की संस्कृतियों के अवशेष मिले हैं। यह इस तीर्थ की प्राचीनता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं। इस क्षेत्र में पाए गए अवशेष और पुरातात्विक खोजें इस तीर्थ की महत्ता और इसकी धार्मिक परंपराओं को दर्शाती हैं।

सोम तीर्थ की वर्तमान स्थिति

विलुप्त तीर्थ

यह तीर्थ वर्तमान में विलुप्त हो चुका है। प्राचीन काल में यह कुरुक्षेत्र से 34 किलोमीटर की दूरी पर सेंसा नामक गाँव में स्थित था। वर्तमान में इस तीर्थ पर कृषि कार्य किया जा रहा है। ग्रामवासियों के अनुसार, यह तीर्थ अब केवल धार्मिक कथाओं और परंपराओं में ही जीवित है।

ग्रामीण जीवन

सैंसा गाँव के लोग इस तीर्थ के इतिहास और पौराणिक कथाओं को संजोए हुए हैं। गाँव के बुजुर्ग और स्थानीय विद्वान इस तीर्थ के महत्व और इसकी कथाओं को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा रहे हैं।

सोम तीर्थ के धार्मिक अनुष्ठान

स्नान और पूजन

सोम तीर्थ में स्नान और पूजन करने का अत्यधिक धार्मिक महत्व है। यहाँ पर स्नान करने से व्यक्ति सभी प्रकार के रोगों और दोषों से मुक्त होता है। सोमेश्वर का दर्शन और पूजन करने से व्यक्ति को राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता है और वह सोमलोक को प्राप्त करता है।

कार्तिक मास में विशेष महत्व

वामन पुराण में उल्लेख है कि इस तीर्थ में कार्तिक मास में स्नान और पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस मास में यहाँ स्नान और पूजा करने वाला व्यक्ति कार्तिक मास के चन्द्रमा के समान निर्मल होकर स्वर्ग को प्राप्त करता है।

सोम तीर्थ का सांस्कृतिक महत्व

धार्मिक कथाएँ और लोकगीत

इस मंदिर की धार्मिक कथाएँ और लोकगीत स्थानीय संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। ये कथाएँ और गीत धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों के अवसर पर गाए जाते हैं, जो इस तीर्थ के महत्व को और भी बढ़ाते हैं।

ग्रामीण मेले और उत्सव

सैंसा गाँव में सोम तीर्थ के सम्मान में ग्रामीण मेले और उत्सवों का आयोजन किया जाता है। इन मेलों और उत्सवों में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं। ये आयोजन स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत उदाहरण हैं।

पर्यावरण और प्राकृतिक सौंदर्य

प्राकृतिक वातावरण

सोम तीर्थ का प्राकृतिक वातावरण अत्यंत सुंदर और शांतिपूर्ण है। यहाँ की हरियाली, स्वच्छ जल, और निर्मल हवा तीर्थयात्रियों को एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य और शांति का प्रतीक है।

पर्यावरण संरक्षण

सोम तीर्थ और इसके आस-पास के क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता है। स्थानीय लोग और प्रशासन मिलकर इस क्षेत्र की प्राकृतिक सुंदरता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के प्रयास करते हैं।

सोम तीर्थ के निकट स्थित दर्शनीय स्थल

कुरुक्षेत्र

कुरुक्षेत्र, जो सोम तीर्थ से लगभग 25 कि.मी. की दूरी पर स्थित है, ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का स्थल है। महाभारत की भूमि के रूप में प्रसिद्ध कुरुक्षेत्र में कई महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हैं। ब्रह्मसरोवर, ज्योतिसर, और शेख चिल्ली का मकबरा प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।

अन्य तीर्थ स्थल

सोम तीर्थ के निकट अन्य कई तीर्थ स्थल भी हैं जो धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं। ये स्थल तीर्थयात्रियों को एक संपूर्ण धार्मिक अनुभव प्रदान करते हैं।

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