सोम, गुमथला गढ़ु तीर्थ: एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर
सोम, गुमथला गढ़ु तीर्थ हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित एक प्राचीन तीर्थ स्थल है। यह तीर्थ पेहवा से 9 कि.मी. तथा कुरुक्षेत्र से लगभग 37 कि.मी. की दूरी पर स्थित गुमथला गढु नामक ग्राम में स्थित है। इस तीर्थ का वर्णन महाभारत, वामन पुराण एवं पद्म पुराण में मिलता है। वामन पुराण में इस तीर्थ को सोम देव से सम्बन्धित बताया गया है। इस लेख में हम सोम, गुमथला गढ़ु तीर्थ के ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ यहाँ की पौराणिक कथाओं और पुरातात्विक खोजों पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे।
पौराणिक कथा
सोम देव और दक्ष प्रजापति की कथा
वामन पुराण में सोम, गुमथला गढ़ु तीर्थ का महत्व अत्यंत विशद रूप से वर्णित है। कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति के श्रापवश एक बार सोमदेव भयंकर राजयक्ष्मा रोग से पीड़ित हो गए थे। तत्पश्चात् देवताओं के आग्रह पर दक्ष प्रजापति के आदेशानुसार सोम ने इस स्थान पर उग्र एवं कठोर तप द्वारा स्वयं को उस भीषण व्याधि से मुक्त कर लिया था।
ततो गच्छेत् विप्रेन्द्राः सोमतीर्थमनुत्तमम्।
यत्र सोमस्तपस्तप्त्वा व्याधिमुक्तः अभवत् पुरा।
तत्र सोमेश्वरं दृष्ट्वा स्नात्वा तीर्थवरे शुभे।
राजसूयस्य यज्ञस्य फलं प्राप्नोतिमानवः।
व्याधिभिश्च विनिर्मुक्तः सर्वदोषविवर्जितम्।
सोमलोकमवाप्नोति तत्रैव रमते चिरम्।
(वामन पुराण 34/33-35)
महाभारत में सोम तीर्थ का उल्लेख
महाभारत में भी सोम तीर्थ का उल्लेख मिलता है। वन पर्व के 83वें अध्याय में वर्णित सोमतीर्थ को जयन्ती (वर्तमान जींद) में स्थित बताया है। वहां भी इस तीर्थ का सेवन करने वाले मनुष्य को राजसूय यज्ञों के फल का अधिकारी बताया गया है।
ततो गच्छेत् नरश्रेष्ठ सोमतीर्थमनुत्तमम्।
तत्रे स्नात्त्वा नरो राजन् सोमलोकमवाप्नुयात्।
(महाभारत, वन पर्व, 83/114-115)
वामन पुराण में तीर्थ का महत्व
द्विज राज्य की प्राप्ति
वामन पुराण में अन्यत्र ऐसा भी उल्लेख है कि यहां पर सोम ने अत्यन्त उग्र तपस्या करके द्विज राज्य को प्राप्त किया था। इस तीर्थ के महत्त्व के विषय में लिखा है कि इस तीर्थ में स्नान करके देवों और पितरों की पूजा करने वाला मनुष्य कार्तिक मास के चन्द्रमा के समान निर्मल होकर स्वर्ग को प्राप्त करता है।
सोम, गुमथला गढ़ु तीर्थ का स्थापत्य
मन्दिर का गर्भगृह
तीर्थ स्थित मन्दिर के गर्भगृह में शिवलिंग प्रतिष्ठित है। गर्भगृह की पश्चिमी भित्ति पर गन्धमादन पर्वत को उठाते हुए हनुमान का चित्र उत्कीर्ण है। शिवलिंग के पास ही नन्दी व गणेश की संगमरमर की आधुनिक प्रतिमाएं हैं।
प्राचीन प्रतिहार कालीन अवशेष
तीर्थ परिसर से ही प्रतिहार कालीन (9-10वीं शती ई.) मन्दिर के भग्न स्तम्भ तथा इसी काल की मूर्तियों के मिलने से इस तीर्थ की प्राचीनता स्वयं सिद्ध हो जाती है।
धार्मिक महत्व
स्नान और पूजा का महत्त्व
वामन पुराण के अनुसार, इस तीर्थ में स्नान कर एवं वहाँ स्थित सोमेश्वर का दर्शन करने पर मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त करता है तथा समस्त रोग, शोक व दोष से मुक्त हो सोमलोक को प्राप्त कर चिरकाल तक वहाँ आनन्दपूर्वक निवास करता है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
प्रतिहार कालीन मंदिर
गुमथला गढ़ु तीर्थ के मंदिर का निर्माण प्रतिहार काल में हुआ था, जिसका प्रमाण वहाँ मिले भग्न स्तम्भ और मूर्तियों से मिलता है। यह स्थल प्रतिहार कालीन स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
स्थानीय परंपराएं और मान्यताएं
गुमथला गढ़ु ग्राम में स्थित यह तीर्थ स्थल स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है। यहाँ प्रतिवर्ष विभिन्न धार्मिक उत्सव और मेलों का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।
सोम, गुमथला गढ़ु तीर्थ एक महत्वपूर्ण धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थल है। यह तीर्थ स्थान न केवल पौराणिक कथाओं और धार्मिक ग्रंथों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, बल्कि यहाँ की स्थापत्य कला और पुरातात्विक अवशेष भी इसकी प्राचीनता और महत्ता को सिद्ध करते हैं। गुमथला गढ़ु तीर्थ का महत्व सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
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