सप्तसारस्वत तीर्थ: एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल
सप्तसारस्वत तीर्थ हरियाणा के पिहोवा से लगभग 12 किलोमीटर और कुरुक्षेत्र से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर मंगना नामक ग्राम की उत्तरी दिशा में सरस्वती नदी के दक्षिण-पश्चिमी तट पर स्थित है। इस तीर्थ का नाम सप्तसारस्वत सात सरस्वतियों के संगम से जुड़ा है। सप्तसारस्वत तीर्थ का उल्लेख वामन पुराण और महाभारत में मिलता है, जहाँ इसे त्रैलोक्य में दुर्लभ कहा गया है।
सप्तसारस्वत तीर्थ का पौराणिक महत्व
सप्त सरस्वतियों का संगम
सप्तसारस्वत तीर्थ का नाम सप्त सरस्वतियों के संगम से उत्पन्न हुआ है। वामन पुराण के अनुसार, इस तीर्थ में सात सरस्वतियों (सुप्रभा, कांचनाक्षी, विशाला, मानसह्रदा, सरस्वती ओघनामा, विमलोदका और सुवेणु) का संगम होता है।
वामन पुराण में उल्लेख:
सप्तसारस्वतं तीर्थं त्रैलोकस्यापि दुर्लभम्।
यत्र सप्त सरस्वत्य एकीभूता वहन्ति च।
सुप्रभा कांचनाक्षी च विशाला मानसह्रदा।
सरस्वत्योघनामा च सुवेणुर्विमलोदका।
(वामन पुराण 37/17-18)
महाभारत के शल्य पर्व में भी सप्त सरस्वतियों का उल्लेख निम्न श्लोक में है:
राजन्सप्तसरस्वत्योः याभिव्र्याप्तं इदं जग्त।
आहुताबलवद्भिर्हि तत्र तत्र सरस्वती।।
सुप्रभा कांचनाक्षी च विशाला च मनोरमा।
सरस्वती चैघवती सुरेणुर्विमलोदका।।
(महाभारत-शल्यपर्व, 38.4)
महर्षि मंकणक की कथा
सप्तसारस्वत तीर्थ से जुड़ी एक अन्य कथा महर्षि मंकणक की है। एक बार मंकणक ऋषि के कुशाग्र से क्षत होने पर उनके हाथ से वानस्पतिक तरल पदार्थ बहने लगा। यह देख हर्षावेश में ऋषि नृत्यमग्न हो गए। ऋषि का नृत्य देखकर समस्त चराचर पदार्थ भी नृत्य करने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर महादेव ने मंकणक ऋषि का नृत्य बंद कराया और वरदान दिया कि सप्तसारस्वत तीर्थ में स्नान और अर्चना करने वालों को संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं होगा।
महाभारत में उल्लेख:
सप्तसारस्वते स्नात्वा अर्चयिष्यन्ति ये तु माम्।
न चेषां दुर्लभं किचिदिह लोके परत्र च।।
सारस्वतं च ते लोकं गमिष्यन्ति न संशयः।
(महाभारत, वन पर्व, 83/133-134)
सप्तसारस्वत तीर्थ का भूगोल और स्थापत्य
स्थान और पहुँच
सप्तसारस्वत तीर्थ पिहोवा से 14 किलोमीटर की दूरी पर मांगना गाँव की उत्तरी दिशा में स्थित है। तीर्थ तक पहुँचने के लिए कोई स्वतंत्र मार्ग नहीं है, गाँव की गलियों से होकर इस तीर्थ तक पहुँचा जा सकता है। यह तीर्थ सरस्वती नदी के दक्षिण-पश्चिम तट पर स्थित है।
सरस्वती नदी और सात धाराएँ
सप्तसारस्वत तीर्थ सरस्वती नदी के तट पर स्थित है, जहाँ सात सरस्वतियों का संगम होता है। यह स्थल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, और इसके चारों ओर का परिदृश्य प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है।
तीर्थ के प्रमुख स्थल
गंगाकूप
तीर्थ परिसर में स्थित एक प्राचीन कुआँ जिसे गंगाकूप कहा जाता है, चमत्कार की दृष्टि से लोगों को आकर्षित करता है। जनश्रुति के अनुसार, बैसाखी के पवित्र दिन इस कुँए में गंगा प्रकट होती है और इसका पानी दूधिया हो जाता है। इस दिन कुँए के जल से स्नान करना गंगा स्नान के बराबर माना जाता है।
शिवमंदिर
तीर्थ में एक अष्टकोणीय आधार और गुम्बदाकार शिखर वाला शिवमंदिर है। यह मंदिर आधुनिक टाईलों से सुसज्जित है। मंदिर के गर्भगृह में लाल बलुआ पत्थर से निर्मित एक विशाल खंडित शिवलिंग स्थापित है।
सप्तसारस्वत तीर्थ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
धार्मिक अनुष्ठान और मान्यताएँ
सप्तसारस्वत तीर्थ धार्मिक अनुष्ठानों और मान्यताओं का केंद्र है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान करते हैं और सरस्वती की पूजा करते हैं। सरस्वती नदी के सात धाराओं के संगम स्थल पर स्नान करना विशेष धार्मिक महत्त्व रखता है।
सांस्कृतिक धरोहर
सप्तसारस्वत तीर्थ केवल धार्मिक महत्त्व ही नहीं रखता, बल्कि यह सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। यहाँ की प्राचीन वास्तुकला और धार्मिक मान्यताएँ इस स्थान की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाती हैं। सप्तसारस्वत तीर्थ भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा है।
वामन पुराण और महाभारत में उल्लेख
वामन पुराण और महाभारत में सप्तसारस्वत तीर्थ का विस्तार से उल्लेख है, जो इसकी प्राचीनता और महत्त्व को प्रमाणित करता है। इन ग्रंथों में इस तीर्थ के माहात्म्य और सात सरस्वतियों के नामों का वर्णन है, जो इसे धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बनाता है।
सप्तसारस्वत तीर्थ का संरक्षण और पुनरुद्धार
वर्तमान स्थिति
सप्तसारस्वत तीर्थ का वर्तमान स्थिति चिंताजनक है। यहाँ के मन्दिर और अन्य धार्मिक स्थल जीर्णशीर्ण अवस्था में हैं। इस धरोहर को संरक्षित करने की आवश्यकता है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल का लाभ उठा सकें।
संरक्षण के प्रयास
सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा सप्तसारस्वत तीर्थ के संरक्षण और पुनरुद्धार के प्रयास किए जा रहे हैं। मन्दिर और अन्य धार्मिक स्थलों की मरम्मत और संरक्षण से इस स्थल की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को बनाए रखा जा सकता है।
सप्तसारस्वत तीर्थ की यात्रा
कैसे पहुँचें
सप्तसारस्वत तीर्थ पिहोवा से 14 किलोमीटर और कुरुक्षेत्र से लगभग 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तीर्थ तक पहुँचने के लिए कोई स्वतंत्र मार्ग नहीं है, गाँव की गलियों से होकर इस तीर्थ तक पहुँचा जा सकता है।
यात्रा की योजना
सप्तसारस्वत तीर्थ की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय बैसाखी का पवित्र दिन है, जब गंगाकूप का जल दूधिया हो जाता है और गंगा स्नान के बराबर माना जाता है। इसके अलावा, यहाँ के धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर श्रद्धालु आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
सप्तसारस्वत तीर्थ एक महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल है, जो सरस्वती की सात धाराओं के संगम से जुड़ा है। यह स्थल न केवल धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। वामन पुराण और महाभारत में इस तीर्थ का उल्लेख इसकी प्राचीनता और महत्ता को प्रमाणित करता है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए, इस तीर्थ का संरक्षण और पुनरुद्धार आवश्यक है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इस धरोहर का लाभ उठा सकें और इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को समझ सकें।
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