ओजस तीर्थ: एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल

ओजस तीर्थ: एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल

ओजस तीर्थ का उल्लेख प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है, और यह तीर्थस्थल भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय से संबंधित है। कुरुक्षेत्र से लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह तीर्थस्थल समस्तीपुर नामक ग्राम में स्थित है। यह तीर्थ अपने धार्मिक महत्व और ऐतिहासिक धरोहर के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

वामन पुराण में ओजस तीर्थ का वर्णन

कुमार का अभिषेक

वामन पुराण में इस तीर्थ का उल्लेख विशेष रूप से किया गया है। इसमें बताया गया है कि देवताओं ने कुमार कार्तिकेय को अपनी सेना के सेनापति का पद प्रदान किया था और उनका अभिषेक सरस्वती नदी के तट पर स्थित इस पवित्र तीर्थ पर किया गया था।

कुमारस्याभिषेकं च ओजसं नाम विश्रुतम् ।
तस्मिन् स्नातस्तु पुरुषो यशसा च समन्वितः ।।
कुमारपुरमाप्नोति कृत्वा श्राद्धं तु मानवः ।
चैत्रषष्ठ्‌यां सिते पक्षे यस्तु श्राद्धं करिष्यति ।
गयाश्राद्धे च यत्पुण्यं तत्पुष्यं प्राप्नुपान्नरः ।
(चामन पुराण, 41/7-8)

इस श्लोक में स्पष्ट किया गया है कि ओजस तीर्थ पर स्नान करने से मनुष्य यश प्राप्त करता है और श्राद्ध करने वाला व्यक्ति कुमार के लोक को प्राप्त होता है।

श्राद्ध का महत्व

वामन पुराण के अनुसार, ओजस तीर्थ में किया गया श्राद्ध अक्षय होता है और यह श्राद्ध करने वाले व्यक्ति के पितरों को विशेष पुण्य प्राप्त होता है।

ओजसे ह्यक्षयं श्राद्धं वायुना कथितं पुरा।
(वामन पुराण 41/9-11)

इसका अर्थ यह है कि इस तीर्थ पर किया गया श्राद्ध अक्षय होता है और इसे वायु ने पूर्व में कहा था।

ब्रह्म पुराण में उल्लेख

ब्रह्म पुराण में भी इस तीर्थ का उल्लेख मिलता है, जहां इसे ‘रेणुकं पंचवटकं विमोचनमधौजसम्’ कहकर संबोधित किया गया है। यह बताता है कि ओजस तीर्थ की महिमा अन्य तीर्थों की तरह ही महान है।

महाभारत में ओजस तीर्थ का उल्लेख

कुमार कार्तिकेय की कथा

महाभारत के शल्य पर्व में कुमार कार्तिकेय की कथा विस्तार से वर्णित है। इसमें बताया गया है कि जब भगवान शंकर का तेज अग्नि में गिरा, तो उसे गंगा में डाल दिया गया, जहां वह हिमालय के शिखर पर सरकण्डों में छोड़ दिया गया। वहां यह तेजोमय शिशु छः कृतिकाओं द्वारा देखा गया, जिन्होंने उसे अपना-अपना पुत्र बताया। बालक के अद्भुत रूप को देखकर सभी देवता ब्रह्मा जी के पास जाकर उसे कोई आधिपत्य प्रदान करने की प्रार्थना करने लगे। ब्रह्मा जी ने उसे देवताओं के सेनापति का पद प्रदान किया।

अभिषेक स्थल

महाभारत में इस अभिषेक के स्थान का वर्णन किया गया है:

ततः कुमारमादाय देवा ब्रह्मपुरोगमाः ।
अभिषेकार्थमाजग्मुः शैलेन्द्र सहितास्ततः ।।
पुण्यां हैमवतीं देवीं सरिच्छ्रेष्ठां सरस्वतीम् ।
समंतपंचके या वै त्रिषुलोकेषु विश्रुतम् ।।
तत्र तीरे सरस्वत्याः पुण्ये सर्वगुणान्विते ।
निषेदुर्देवा गंधर्वाः सर्वे संपूर्णमानसाः ।।
(महाभारत, शल्य पर्व, 44/51-53)

इसमें बताया गया है कि सभी देवता ब्रह्मा जी के नेतृत्व में कुमार कार्तिकेय का अभिषेक करने के लिए सरस्वती नदी के पवित्र तट पर आए थे, जो कि समंतपंचक में स्थित है और तीनों लोकों में प्रसिद्ध है।

धार्मिक महत्व और मान्यताएँ

ओजस तीर्थ का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। यहां स्नान करने और श्राद्ध करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। वामन पुराण और महाभारत दोनों में इसका उल्लेख होने से इसकी पवित्रता और महत्व की पुष्टि होती है।

श्राद्ध की विधि और समय

वामन पुराण में विशेष रूप से चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यहां श्राद्ध करने का महत्व बताया गया है। इस दिन यहां श्राद्ध करने से गया में किए गए श्राद्ध के समान पुण्य प्राप्त होता है।

“चैत्रषष्ठ्‌यां सिते पक्षे यस्तु श्राद्धं करिष्यति ।
गयाश्राद्धे च यत्पुण्यं तत्पुष्यं प्राप्नुपान्नरः।”
(वामन पुराण, 41/7-8)

इसका अर्थ यह है कि चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को जो व्यक्ति यहां श्राद्ध करता है, उसे गया में किए गए श्राद्ध के समान पुण्य प्राप्त होता है।

अक्षय श्राद्ध

वामन पुराण में आगे यह भी बताया गया है कि ओजस तीर्थ में किया गया श्राद्ध अक्षय होता है।

सन्निहित्यां यथा श्राद्ध राहुग्रस्ते दिवाकरे ।
तथा श्राद्धं तत्र कृतं नात्र कार्या विचारणा ।
ओजसे ध्यक्षयं श्राद्धं वायुना कथितं पुरा ।
तस्मात् सर्वप्रयत्नेन श्राद्धं तत्र समाचरेत् ।
यस्तु स्नानं श्रद्दधानश्चैत्रषष्ठ्‌यां करिष्यति ।
अक्षम्यमुदकं त्तस्य पितृणामुपजायते ।
(वामन पुराण, 41/9-11)

इसका तात्पर्य यह है कि सन्निहित में सूर्यग्रहण के अवसर पर किए गए श्राद्ध के समान पुण्य ओजस तीर्थ में किए गए श्राद्ध से प्राप्त होता है। इसलिए यहां प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए। विशेष रूप से चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन जो व्यक्ति यहां श्रद्धापूर्वक स्नान करता है, उसके पितरों को अक्षय जल की प्राप्ति होती है।

वर्तमान स्थिति

समस्तीपुर नामक ग्राम में स्थित यह तीर्थ वर्तमान में विलुप्त हो चुका है। हालांकि, ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों में इसका उल्लेख अभी भी इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाता है। वामन पुराण और महाभारत में इसका वर्णन इसे एक पवित्र और महत्वपूर्ण स्थान बनाता है।

ओजस तीर्थ एक पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जो भगवान शिव के पुत्र कुमार कार्तिकेय से संबंधित है। वामन पुराण और महाभारत में इसके महत्व और पवित्रता का वर्णन इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाता है। यहां स्नान करने और श्राद्ध करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, और यह श्राद्ध अक्षय माना जाता है। वर्तमान में यह तीर्थ विलुप्त हो चुका है, लेकिन इसकी धार्मिक महिमा और ऐतिहासिक महत्व इसे एक महत्वपूर्ण स्थल बनाते हैं।

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