ब्रह्मस्थान तीर्थ: एक अद्वितीय धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहर
ब्रह्मस्थान तीर्थ पिहोवा से लगभग 15 कि.मी. तथा कुरुक्षेत्र से लगभग 42 कि.मी. की दूरी पर थाणा नामक ग्राम में स्थित है। यह तीर्थ लगभग 115 एकड़ भूमि में विस्तृत है और कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थों में से एक है। महाभारत के वन पर्व में इस तीर्थ का विस्तृत वर्णन मिलता है। यह तीर्थ धार्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व का केंद्र है, जो विभिन्न पुराणों और ग्रंथों में उल्लिखित है।
महाभारत में ब्रह्मस्थान का वर्णन
महाभारत के वन पर्व के 84 वें अध्याय में ब्रह्मस्थान का स्पष्ट नामोल्लेख और महत्त्व वर्णित है:
ततोगच्छेत्राजेन्द्र ब्रह्मस्थानमनुत्तमम्।
तत्राभिगम्यराजेन्द्र ब्रह्माणं पुरुषर्षभ।
राजसूयस्याश्वमेघाभ्यां फलंप्राप्नोति मानवः।
(महाभारत, वन पर्व 84/103-104)
इस श्लोक के अनुसार, ब्रह्मस्थान तीर्थ का दर्शन करने से मनुष्य राजसूय और अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त करता है। यह तीर्थ मानव जीवन के सभी कष्टों को समाप्त करने का और अद्वितीय पुण्य प्राप्त करने का स्थान है।
वामन पुराण में ब्रह्मस्थान
वामन पुराण में इस तीर्थ के नाम और महत्त्व का उल्लेख मिलता है:
ततो गच्छेत सुमहद् ब्रह्मणः स्थानमनुत्तमम्।
यत्र वणीवरःस्नात्वा ब्रह्मण्यं लभते नरः।
ब्राह्मणभ्य विशुद्धात्मा परंपदम वाप्नुयात्।।
(वामन पुराण)
इस श्लोक के अनुसार, ब्रह्मस्थान तीर्थ में स्नान करने से व्यक्ति ब्रह्मा का विशेष आशीर्वाद प्राप्त करता है और स्वर्ग लोक को जाता है।
बल्लीवट वृक्ष और महायोग मूर्ति
नृसिंह पुराण में वर्णन है कि ब्रह्मस्थान तीर्थ के पूर्वी तट पर बल्लीवट नामक महान वृक्ष है, जिसमें भगवान की ‘महायोग’ नामक मूर्ति का निवास है। इसी वृक्ष के नीचे महर्षि मार्कण्डेय ने महर्षि भृगु से महामृत्युंजय मंत्र की प्राप्ति की थी।
पुरातात्विक प्रमाण
ब्रह्मस्थान तीर्थ से कुषाण और गुप्तकालीन ईंटें तथा मृदपात्र मिले हैं, जो इस तीर्थ की प्राचीनता को सिद्ध करते हैं। यह तीर्थ पिहोवा से 17 किलोमीटर दूर थाणा नामक ग्राम में 115 एकड़ भूमि में फैला हुआ है।
कुरुक्षेत्र के विशिष्ट तीर्थ
कुरुक्षेत्र भूमि में प्रत्येक ग्राम में एक विशिष्ट तीर्थ है, और साधारणतया उन गांवों के नाम भी उन्हीं तीर्थों के नाम से जाने जाते हैं। सम्भवतः थाणा का नाम भी ब्रह्मस्थान का ही परिवर्तित रूप है।
त्रिरात्रोपोषण और गोसहस्र फल
महाभारत वन पर्व के 85 वें अध्याय का निम्न श्लोक भी ब्रह्मस्थान के महत्त्व को पुष्ट करता है:
ब्रह्मस्थानं समासाद्य त्रिरात्रोपोषितो नरः।
गोसहस्रफलं विन्द्यात् स्वर्गलोकं च गच्छति।
(महाभारत, वन पर्व, 85/35)
इस श्लोक के अनुसार, ब्रह्मस्थान में तीन रात्रि निवास करने वाला मनुष्य सहस्र गऊओं के दान का फल प्राप्त करता है और स्वर्ग लोक को जाता है।
धार्मिक महत्त्व और चमत्कार
ब्रह्मस्थान तीर्थ के प्रति यहां के निवासियों में अगाध श्रद्धा और अथाह विश्वास पाया जाता है। जनसाधारण में ऐसा विश्वास है कि यहां श्रद्धा रखने से अभीष्ट पद की प्राप्ति होती है। इसी से इस क्षेत्र के निवासी प्रत्येक शनिवार को यहां प्रसाद बांटने के लिए आते हैं। कुछ वर्ष पूर्व इस पवित्र तीर्थ के देवी और चमत्कारिक प्रभाव को देखकर लोगों में इसके प्रति श्रद्धा और अधिक बढ़ गई है।
सरस्वती नहर का चमत्कार
कुछ वर्ष पूर्व गांव के पास से बहने वाली सरस्वती नहर टूटने के कारण सारा तालाब पानी से भर गया। सरकार ने पानी का खर्च लगभग 7000 रुपये ग्राम पंचायत पर डाल दिया। ग्राम पंचायत इसे देने की इच्छुक नहीं थी। उसी समय एक चमत्कार से तालाब के एक हिस्से में कमल के पौधे स्वतः ही उग आए और उनकी जड़ों में भीस लग गई जिससे हुई पर्याप्त आमदनी से सरकारी ऋण चुका दिया गया। उससे भी अधिक आश्चर्यजनक घटना यह थी कि उसके बाद तालाब में कमल का एक भी पौधा पैदा नहीं हुआ।
प्राचीन शिव मंदिर
यहां पर एक प्राचीन शिव मन्दिर है। सप्त रथ आधार योजना वाले इस मन्दिर का शिखर नागर शैली का है जिसकी ऊंचाई लगभग 30 फुट है। मन्दिर में मण्डप और गर्भगृह हैं जिसमें शिवलिंग प्रतिष्ठित है। मन्दिर के आन्तरिक भाग में आधुनिक टाइलें लगी हैं जिसमें देवी देवताओं तथा सिक्ख गुरुओं की छवियां चित्रित हैं।
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