ब्रह्मसरोवर: कुरुक्षेत्र का प्राचीन और विशाल मानव निर्मित सरोवर
भारत भूमि को प्राचीन इतिहास, समृद्ध संस्कृति और धर्म की जड़ों से जोड़ने वाले तीर्थ स्थलों के लिए जाना जाता है। इन्हीं में से एक है कुरुक्षेत्र का ब्रह्मसरोवर, जिसे एशिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित सरोवर माना जाता है। इस सरोवर का उल्लेख न केवल भारतीय पौराणिक ग्रंथों में मिलता है, बल्कि यह ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कुरुक्षेत्र का सबसे बड़ा तीर्थ ब्रह्म सरोवर है। यह तीर्थ ब्रह्मा से संबंधित है, इसलिए इसे ब्रह्म सरोवर कहा जाता है, जो सृष्टि का मूल स्थान माना जाता है। महर्षि लोमहर्षण ने विष्णु, शिव और बह्मा को साक्षी मानकर कहा:
ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थं विष्णुं च लक्ष्मी सहितं तथैव।
रुद्रं च देवं प्रणिपत्य मूर्ना तीर्थं वरं ब्रह्मसरः प्रवक्ष्ये॥
(वामन पुराण 22/50)
आद्यं ब्रह्मसरः पुण्यं ततो रामह्रद स्मृतः ।
इस श्लोक का अर्थ है कि “ब्रह्मा, विष्णु, और रुद्र को प्रणाम करके, जो कि कमलासन पर बैठे हुए हैं, और जिनके साथ लक्ष्मी भी है, ऐसे तीनों देवताओं का प्रणाम करके ब्रह्म सरोवर को यह श्रेष्ठ और पवित्र तीर्थ माना जाता है। इसलिए मैं अब ब्रह्म सरोवर को सर्वोत्तम तीर्थ के रूप में वर्णित करूँगा।”
अर्थ यह है कि “पहले ब्रह्म सरोवर को पावन माना जाता है, फिर रामह्रद (रामसरोवर) को स्मरण किया जाता है।”
ब्रह्मसरोवर का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व
ब्रह्मसरोवर का नाम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा से जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की रचना के समय ब्रह्मा ने यहीं पर यज्ञ किया था। इस स्थान का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों जैसे महाभारत, वामन पुराण और वेदों में मिलता है। महाभारत के अनुसार, राजा कुरु ने इस सरोवर की खुदाई करवाई थी, जिसके बाद इस क्षेत्र का नाम कुरुक्षेत्र पड़ा।
चार वर्णों की उत्पत्ति और ब्रह्मसरोवर का महत्व
वामन पुराण के अनुसार चारों वर्णों को इसी जगह बनाया गया था क्योंकि ब्रह्मा ने सृष्टि की प्रक्रिया को देखते हुए ऐसा किया था। इसी पुराण में कहा गया है कि इस तीर्थ में स्नान करने और चतुर्दशी तथा चैत्रमास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को उपवास करने से जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा मिलता है। महाभारत में कहा गया है कि इस तीर्थ में स्नान करने वाले ब्रह्मलोक को पाते हैं और अपने परिवार को पवित्र करते हैं। वेदों में बताया गया है कि राजा पुरुरवा और उर्वशी ने इसी सरोवर के तट पर प्रसिद्ध बातचीत की थी।
लौकिक कहानियों के अनुसार, राजा कुरु ने इस सरोवर को पहली बार बनाया था। प्राचीन काल में इसे ब्रह्मा की उत्तरवेदि, ब्रह्मवेदि तथा समन्तपंचक भी कहा जाता था। सूर्यग्रहण के दिन इस सरोवर में स्नान करने का फल हजारों अश्वमेध यज्ञों के समान होता है।
ब्रह्मसरोवर: महाभारत से मुगल काल तक का ऐतिहासिक सफर
यह सरोवर दो हिस्सों में बहता है। महाभारत के युद्ध के अंतिम दिन, जब दुर्योधन हार गया, तो वह इसी ब्रह्मसरोवर में छुप गया था। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर ने दोनों पक्षों के मध्य में एक विजय स्तम्भ बनाया था, लेकिन बाद में वह नष्ट हो गया। इस क्षेत्र में मध्यकालीन मुस्लिम राजाओं ने सैनिक छावनी बनाई, जो सरोवर में स्नान करने वालों से जजिया कर वसूलती थी। 1567 में मुगल सम्राट अकबर ने सूर्यग्रहण पर कुरुक्षेत्र की यात्रा के दौरान यह कर समाप्त कर दिया था। औरंगजेब ने इस कर को फिर से जारी किया। इस कर को अंततः 18वीं शताब्दी के मध्य में मराठों ने समाप्त कर दिया।
द्रौपदी कूप
द्रौपदी कूप इसे चंद्रकूप भी कहा जाता है। ब्रह्म सरोवर आने वाले श्रद्धालु सरोवर में स्नान करने के उपरांत इस कूप के दर्शन अवश्य करते हैं, जिसे बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में भीम द्वारा दुशासन को मारने उपरात द्रौपदी ने अपने खुले केश दुशासन के खून से रगे थे और उसके बाद उसकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई थी। इसके बाद द्रौपदी ने अपने खुले केशों को यहीं आकर धोए थे यही कारण है कि यह स्थान वर्तमान में द्रौपदी कूप के नाम से जाना जाता है।
ऐतिहासिक सर्वेश्वर महादेव मन्दिर
सरोवर के मध्य में सर्वेश्वर का मन्दिर है। जनश्रुतियों के अनुसार, इसी स्थान पर ब्रह्मा ने पहले शिवलिंग की स्थापना की थी। इस मन्दिर तक पहुंचने के लिए एक पुल बनाया गया है। मन्दिर के चारों ओर नागर शैली में चार शिखर हैं, जो वास्तुकला की दृष्टि से अलग हैं।
गीता जयंती महोत्सव
हर साल नवंबर-दिसंबर के महीने में ब्रह्मसरोवर के तट पर गीता जयंती महोत्सव का आयोजन होता है। इस अवसर पर पूरे क्षेत्र में भक्तों का तांता लगा रहता है। महोत्सव के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रम, धार्मिक अनुष्ठान और मेले का आयोजन किया जाता है।
ब्रह्म सरोवर का पुनर्निर्माण
इस तीर्थ को पहली बार सन् 1850 में थानेसर के जिलाधीश श्री लरकिन ने खुदवाकर पुनर्निर्माण करवाया था। लेकिन तीर्थ को वर्तमान रूप देने का पूरा श्रेय स्वर्गीय श्री गुलजारी लाल जी नन्दा को है। सन् 1968 में, उनकी प्रेरणा से कुरुक्षेत्र विकास मण्डल का गठन किया गया था, जो तीथों को बचाने और विकसित करने के लिए बनाया गया था। कुरुक्षेत्र विकास मण्डल ने अपने गठन के तुरन्त बाद ब्रह्मसरोवर का पुनर्निर्माण और विकास करना शुरू किया।
कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड विशाल सरोवर को विकसित कर रहा है। सरोवर चारों ओर से छोटा किया गया है। सरोवर 15 फुट गहरा है। इसके चारों ओर सुंदर हरी घाटी है। स्त्रियों के स्नान के लिए अलग-अलग घाट बनाए गए हैं। साथ ही, शौचालय सहित अन्य सुविधाएं उपलब्ध हैं।
दूर-दूर तक विस्तृत शुभ्र नीलिमा से युक्त इसकी शुद्ध और स्निग्ध जलधारा मानव के दुखी मन को अद्भुत शान्ति देती है।
पूर्वी और पश्चिमी ब्रह्मसरोवर: स्थापत्य कला और धार्मिक महत्व का संगम
पूर्वी ब्रह्म सरोवर 1800 फुट लंबा है, 1500 फुट चौड़ा है, और पश्चिमी ब्रह्म सरोवर 1500 फुट चौड़ा है, और 15 फुट गहरा है। लाल पत्थर से सरोवर के चारों ओर 20 फुट चौड़ा प्लेटफार्म, 18 फुट चौड़ी छह सीढ़ियां और 40 फुट चौड़ा विशाल परिक्रमा पथ बनाया गया है। यह परिक्रमा मार्ग मेहराब निर्मित छोटे घरों से घिरा हुआ है। पर्यटकों और तीर्थयात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए ये छोटे घर बनाए गए हैं। इस सरोवर के आसपास कई मन्दिर हैं, जो आधुनिक और प्राचीन दोनों शैली में बनाए गए हैं।
ऐतिहासिक विरासत और प्राचीन संस्कृति का प्रतीक
ब्रह्मसरोवर की उत्तरी दिशा में एक प्राचीन घाट के अवशेष देखने को मिलते हैं जिसे शेरों वाला घाट के नाम से जाना जाता है। इसी घाट का निर्माण ईस्ट इण्डिया कम्पनी के काल में सन् 1855 में हुआ था। जैसा कि नाम से प्रतीत होता है इस घाट के मेहराब के ऊपर एक लम्बे प्लेटफार्म पर दो सिहों को आमने-सामने दिखाया गया है।
ब्रह्मसरोवर की विशालता के बारे में लिखते हुए अकबर के राजदरबार के लेखक अबुल फजल ने इसकी तुलना एक लघु समुद्र से की है
प्राकृतिक सौंदर्य और आधुनिक सुविधाएं
ब्रह्मसरोवर के चारों ओर हरी-भरी घाटियां इसकी सुंदरता को चार चांद लगाती हैं। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए यहां अलग-अलग स्नान घाट, शौचालय और भोजनालय उपलब्ध हैं।
शॉपिंग और स्थानीय बाजार
ब्रह्मसरोवर के मुख्य द्वार के बाहर कई तरह की दुकानें हैं, जहां लकड़ी के शिल्प और सजावटी सामान मिलते हैं। यह स्थान स्थानीय संस्कृति और हस्तशिल्प को जानने का भी एक अच्छा अवसर प्रदान करता है।
प्राचीन बौद्ध स्तूप
ब्रह्मसरोवर के पास ही एक प्राचीन बौद्ध स्तूप पुरातत्व उत्खनन से प्राप्त हुआ है जो 7 वीं सदी का माना जाता है। सम्भवतः इसी स्तूप के बारे में ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक सीयूकी में इसका वर्णन किया है एवं अलेक्जेंडर कनिंघम ने भी इसी स्तूप के बारे में अपने विवरण में बताया है।
ब्रह्मसरोवर का धार्मिक महत्व: पुराणों और शास्त्रों में
- वामन पुराण: इस पुराण में कहा गया है कि ब्रह्मसरोवर में स्नान करने वाले व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त होता है।
- महाभारत: यहां स्नान करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति और कुल का उद्धार होता है।
- किताब-उल-हिन्द: प्रसिद्ध विद्वान अलबेरुनी ने अपनी किताब में ब्रह्मसरोवर की पवित्रता का उल्लेख किया है।
कैसे पहुंचे ब्रह्मसरोवर?
ब्रह्मसरोवर शहर के मध्य में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पास स्थित है और कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से केवल 3 किलोमीटर की दूरी पर है। यह स्थान देश के हर कोने से सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। ब्रह्मसरोवर तक पहुंचने के लिए पक्की रास्ते बनाई गई हैं। सरोवर तट पर वाहनों द्वारा या पैदल चलकर जाना आसान है। यह प्राचीन सरोवर पौने चार किलोमीटर लंबा है और भारत में मानव निर्मित सरोवरों में से सबसे बड़ा है।
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