भूरिश्रवा तीर्थ: एक प्राचीन और धार्मिक स्थल

भूरिश्रवा तीर्थ: एक प्राचीन और धार्मिक स्थल

भूरिश्रवा तीर्थ कुरुक्षेत्र से लगभग 22 किलोमीटर और थानेसर से 13 किलोमीटर पश्चिम में, कुरुक्षेत्र-पेहोवा रोड पर भोर सैदन नामक ग्राम में स्थित है। इस तीर्थ का नाम कुरुवंशी राजा सोमदत के पुत्र एवं महाभारत युद्ध के प्रमुख कौरव पक्षीय योद्धा भूरिश्रवा पर पड़ा है। यह स्थल अपने ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व के कारण अत्यधिक प्रतिष्ठित है।

भूरिश्रवा: एक महान योद्धा

भूरिश्रवा महाभारत युद्ध के श्रेष्ठतम योद्धाओं में से एक थे, जो अपनी असाधारण वीरता और साहस के लिए विख्यात थे। उन्होंने महाभारत युद्ध में कई बार पांडव सेनाओं को हराया था और सात्यकि के दस पुत्रों को भी मारा था। उनकी वीरता और युद्धकला की प्रशंसा पूरे महाभारत में की गई है।

भूरिश्रवा का वध

महाभारत युद्ध के दौरान, एक अवसर पर जब भूरिश्रवा सात्यकि को मारने वाले थे, तब अर्जुन ने बाण वेधकर उनकी दाईं भुजा काट डाली। भुजाहीन भूरिश्रवा जब ध्यान में बैठे हुए थे, तब सात्यकि ने अवसर पाकर उन्हें मार डाला। इस घटना ने महाभारत के युद्ध का रुख बदल दिया और यह घटना महाभारत के महत्वपूर्ण प्रसंगों में से एक है।

भूरिश्रवा का धार्मिक महत्व

भूरिश्रवा भगवान शिव के परम भक्त थे और उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी आत्मा भगवान शिव में ही विलीन हो गई थी। इसी कारण भूरिश्रवा तीर्थ स्थित मंदिर भूरिश्रवेश्वर महादेव कहलाता है। इस मंदिर का धार्मिक महत्व अत्यधिक है और यह भगवान शिव के भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।

तीर्थ का स्थापत्य और मंदिर

भूरिश्रवा तीर्थ में तीन प्रमुख मंदिर स्थित हैं। इनमें भूरिश्रवेश्वर महादेव मंदिर उत्तर मध्यकालीन शैली में निर्मित है। इस मंदिर के गर्भगृह के सामने मण्डप है, जिसका शिखर शंक्वाकार है। अष्टभुजा आधार से निर्मित गर्भगृह का शिखर गुम्बदाकार है और इसकी आंतरिक भित्तियों में भित्ति चित्र बनाए गए हैं। यह स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।

सरोवर और उसके घाट

तीर्थ स्थित सरोवर में वन विभाग, हरियाणा द्वारा मगरमच्छ विहार विकसित किया गया है। यह सरोवर तीर्थ के उत्तर में स्थित है और इसमें दक्षिण की ओर दो घाटों का निर्माण हुआ है जिन्हें सरस्वती तथा गंगा घाटों के नाम से जाना जाता है। सरोवर में प्रचुर मात्रा में उगने वाले कमल इसकी शोभा को और अधिक बढ़ा देते हैं। यह स्थल धार्मिक और प्राकृतिक दृष्टि से अत्यंत सुंदर और शांतिपूर्ण है।

पुरातात्त्विक महत्व

वर्तमान में तीर्थ के उत्तर में प्राचीन सरस्वती का एक पुरा प्रवाह मार्ग खोजा गया है। सरस्वती का यह पुरा प्रवाह मार्ग महाभारत एवं पुराणों में वर्णित साहित्यगत विवरणों की पुष्टि करता है। यह अवशेष इस बात का प्रमाण हैं कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र में सरस्वती नदी का प्रवाह था और यह स्थल उस समय के महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्रों में से एक था।

लोकोक्तियाँ और स्थानीय मान्यताएँ

भूरिश्रवा तीर्थ के संबंध में कई लोकोक्तियाँ और स्थानीय मान्यताएँ प्रचलित हैं। कहा जाता है कि इसी स्थान पर महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण के चचेरे भाई महावीर सात्यकि द्वारा धोखे से भूरिश्रवा का वध किया गया था। इस प्रकार की लोककथाएँ इस तीर्थ स्थल के महत्व को और बढ़ा देती हैं और इसे धार्मिक यात्रियों के लिए एक महत्वपूर्ण गंतव्य बनाती हैं।

भूरिश्रवा तीर्थ न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारतीय इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। महाभारत की कथाओं से लेकर पुरातात्त्विक अवशेषों तक, इस स्थल का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व अत्यधिक है। यहां स्थित मंदिर और सरोवर इस स्थल की शोभा और धार्मिक महत्व को और भी बढ़ाते हैं। भूरिश्रवा तीर्थ वास्तव में एक ऐसा स्थल है जो इतिहास, धर्म और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को एक साथ जोड़ता है और इस प्रकार इसे भारतीय धरोहर का एक अभिन्न अंग बनाता है।

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