बाण गंगा दयालपुर: महाभारतकालीन तीर्थ का इतिहास और महत्व

बाण गंगा दयालपुर: महाभारतकालीन तीर्थ का इतिहास और महत्व

बाण गंगा नामक यह तीर्थ स्थल हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले के दयालपुर नामक ग्राम में स्थित है। ब्रह्म सरोवर से लगभग 4 किलोमीटर दूर इस तीर्थ का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व अत्यधिक है। इस तीर्थ स्थल के बारे में अनेक जनश्रुतियाँ और प्राचीन कथाएँ प्रचलित हैं जो इसे एक विशिष्ट स्थान बनाती हैं। इस लेख में हम बाण गंगा के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत अध्ययन करेंगे।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

महाभारत और बाण गंगा

अर्जुन की कथा

महाभारत के चौदहवें दिन अर्जुन ने जयद्रथ को मारने से पूर्व इस स्थान पर पर्जन्यास्त्र से बाण मारकर जलधारा प्रकट की थी। इस जलधारा के जल से भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के रथ के थके हुए घोड़ों को नहलाया था, जिसके कारण इस तीर्थ का नाम बाण गंगा पड़ा।

कर्ण की कथा

दूसरी जनश्रुति के अनुसार, महादानी कर्ण ने ब्राह्मण वेशधारी श्रीकृष्ण को मरने से पूर्व अपने स्वर्ण मंडित दाँत जलधारा के जल से धो कर भेंट किया था। यह घटना भी इस स्थान की धार्मिक महत्ता को और बढ़ाती है।

कुरुक्षेत्र की अष्टकोशी परिक्रमा

बाण गंगा तीर्थ स्थल कुरुक्षेत्र की अष्टकोशी परिक्रमा मार्ग पर पड़ता है। अष्टकोशी परिक्रमा नाभिकमल तीर्थ से प्रारम्भ होकर कई महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों से होकर गुजरती है और अंत में नाभिकमल मंदिर में सम्पन्न होती है।

स्थल का भौगोलिक विवरण

बाण गंगा का सरोवर

बाण गंगा में वर्तमान में एक उत्तर मध्यकालीन बावड़ीनुमा सरोवर है। इसी तीर्थ सरोवर में ईंटों से बनी धनुषाकृति है। सरोवर का जीर्णोद्धार किया गया है जिससे यह अधिक आकर्षक और सुरक्षित हो गया है।

कच्चा तालाब

सरोवर के पश्चिम में एक दूसरा कच्चा तालाब है जिसका पानी पशुओं को पिलाने के काम में लाया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि पूर्व में यह दोनों सरोवर एक ही रहे होंगे।

ईंटों से बनी धनुषाकृति

सरोवर के तल में उत्तर-दक्षिण की तरफ ईंटों से एक विशाल धनुषाकृति का निर्माण किया गया है जिसकी डोरी लोहे की है। यह निर्माण स्थल की प्राचीनता और वास्तु कला का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।

धार्मिक महत्व

महाभारत की घटनाओं से संबंध

कुरुक्षेत्र के अधिकांश तीर्थों का संबंध महाभारत की घटनाओं से रहा है। जनश्रुति के अनुसार महाभारत युद्ध के दौरान अभिमन्यु की अन्यायपूर्ण मृत्यु से दुखी होकर अर्जुन ने जयद्रथ को सूर्यास्त से पूर्व मारने की प्रतिज्ञा की थी।

अश्वों की थकान

दिन भर के परिश्रम से क्लान्त रथ के अश्वों को श्रीकृष्ण के आग्रह पर अर्जुन ने दोपहर को कुछ क्षणों का विश्राम इस स्थान पर किया। अश्वों की थकान को दूर करने और उन्हें नवीन स्फूर्ति देने के उद्देश्य से अर्जुन ने यहाँ धरती पर बाण मारकर गंगा निकाली थी।

मिट्टी के बने अश्व

जीव मात्र के प्रति करुणाधारी श्रीकृष्ण ने यहीं पर अश्वों को स्नान करवाया तथा उन्हें शीतल जल पिलाया। संभवतः इसी कारण इस तीर्थ पर मिट्टी के बने अश्वों को भेंट किया जाता है।

स्थल के अन्य महत्वपूर्ण संरचनाएँ

समाधि

सरोवर की उत्तरी दिशा में वाल्ट के आकार एवं वर्गाकार आधार से उठाई गई लाखौरी ईंटों से निर्मित एक समाधि है। यह समाधि स्थल की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को और बढ़ाती है।

वृक्ष और वनस्पति

तीर्थ परिसर के चारों ओर आम, पीपल, नीम इत्यादि के वृक्ष हैं। यह वृक्ष न केवल पर्यावरण को शुद्ध करते हैं बल्कि तीर्थ की प्राकृतिक सुंदरता को भी बढ़ाते हैं।

पक्का रास्ता

दोनों सरोवरों के बीच में गांव तक पहुंचने के लिए पक्का रास्ता है। यह रास्ता तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों के लिए सुविधाजनक मार्ग प्रदान करता है।

आधुनिक समय में बाण गंगा

जीर्णोद्धार और संरक्षण

बाण गंगा तीर्थ स्थल का जीर्णोद्धार और संरक्षण किया जा रहा है। सरोवर और अन्य संरचनाओं की मरम्मत और रखरखाव से यह स्थल और भी आकर्षक बन गया है।

धार्मिक अनुष्ठान

यहाँ पर विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान और पर्व मनाए जाते हैं। स्थानीय लोग और दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु यहाँ पर अपनी आस्था प्रकट करते हैं और धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।

पर्यटन और आर्थिक विकास

बाण गंगा एक प्रमुख पर्यटन स्थल भी है। यहाँ पर हर साल अनेक पर्यटक आते हैं जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी लाभ होता है। पर्यटन के माध्यम से स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को भी बढ़ावा मिलता है।

बाण गंगा एक महत्वपूर्ण धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक स्थल है जो हमारी संस्कृति और धार्मिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। इस स्थल की रक्षा और संरक्षण के माध्यम से हम अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रख सकते हैं। बाण गंगा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह हमारे इतिहास और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

इस लेख के माध्यम से हमने बाण गंगा के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत चर्चा की है। आशा है कि यह जानकारी हमारे पाठकों को इस महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल की महत्ता और विशेषताओं के बारे में जागरूक करेगी।

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