ज्योतिसर श्रीमद्भगवद्गीता का जन्मस्थान
ज्योतिसर हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में स्थित एक कस्बा है। यह एक हिन्दू तीर्थ है जो कुरुक्षेत्र-पहोवा मार्ग पर थानेसर से पाँच किमी पश्चिम में स्थित है। ज्योतिसर कुरुक्षेत्र, श्रीगद्भगवद्गीता की जन्मस्थली है। माना जाता है कि यहीं पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। ‘ज्योति’ का अर्थ ‘प्रकाश’ है तथा ‘सर’ का अर्थ ‘तालाब’। यहाँ एक बरगद का वृक्ष है जिसके बारे में मान्यता है कि इसी वट वृक्ष के नीचे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश दिया था और यहीं अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया था। श्रीमद्भगवद्गीता के विश्वरूप दर्शन योग नामक अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस विशाल रूप का वर्णन किया गया है।
ज्योतिसर: श्रीमद्भगवद्गीता के पावन स्थल का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में जहां पर गोविंद ने अपने मोहग्रस्त सखा पार्थ (अर्जुन) को गीता ज्ञान प्रदान करके अपने विराट रूप के दर्शन करवाए। वह स्थान आज भी ज्योतिसर के नाम से जाना जाता है। ज्योतिसर अर्थात् प्रकाश का सरोवर। श्रीमद्भगवद्गीता, ज्ञान का प्रकाश जो मनुष्यों को दिया गया था। यह तीर्थ भारत के प्रमुख तीर्थों में से एक है, शांतिपूर्ण और शांत वातावरण से परिपूर्ण इस तीर्थ में प्रवेश करते ही आपको अद्भुत मानसिक शांति मिलती है। उस पवित्र अक्षय वट के दर्शनों से, जिसके नीचे प्रभु ने अर्जुन को कर्म का पाठ पढ़ाया था, ऐसा लगता है कि हम उन्हीं क्षणों के साक्षी हैं।
यह स्थान मूलतः सरस्वती नदी के तट पर था, जो अब यहाँ लुप्त अवस्था में बहती है। तीर्थ में एक प्राचीन सरोवर के तट पर भगवान ने अक्षय वट के नीचे श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान अर्जुन को दिया था। यहां के वातावरण में प्रवेश करते ही, आध्यात्मिक तरंगें हर व्यक्ति को शुद्धता के पाश में बांध देती हैं। यह लगता है कि श्रीमद्भगवद्गीता का संदेश आज भी यहां के वायुमंडल से निकलता है। भारत में जन्मे कई प्रसिद्ध संतों, विद्वानों और तपस्वीयों ने इस स्थान को अपना आकर्षण बनाए रखा है। विभिन्न समय में, वे यहां आध्यात्मिक पीड़ा को शांत करने के लिए आते रहे हैं। आदि शंकराचार्य का भी श्रीमद्भगवद्गीता के मनन व चिंतन के लिए यहां आगमन हुआ था। पूर्व में कई शासकों ने यहां श्रद्धापूर्वक निर्माण कार्य करवाए परन्तु विदेशी आक्रमणकारियों की संकुचित सोच के चलते कुछ भी शेष न रहा।
आदि गुरु के चिह्न: ज्योतिसर के पवित्र स्थल के महत्वाकांक्षी इतिहास
माना जाता है कि आदि गुरु शंकरावार्य ने इस स्थान को अपनी हिमालय यात्रा के दौरान सर्वप्रथम चिह्नित किया था। 1850 में महाराजा काश्मीर ने यहाँ एक शिव मंदिर बनाया था। 1924 में महाराजा दरभंगा ने गीता उपदेश के साक्षी वट वृक्ष के चारों ओर एक चबूतरा बनाया था। तीर्थ के इसी महत्त्व को दृष्टिगत रखते हुए सन् 1967 में कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य द्वारा मुख्य चबूतरे के साथ गीता उपदेश रथ स्थापित करवाया गया तथा साथ ही चबूतरे के नीचे परिक्रमा पथ के साथ आदि गुरु शंकराचार्य का मन्दिर भी बनवाया गया।
प्राचीन मन्दिर स्थल: ऐतिहासिक धरोहर के अद्वितीय अवशेष
इस स्थान के ऐतिहासिक महत्त्व को 9-10वीं शताब्दी के एक मन्दिर के स्तंभ के अवशेष भी बताते हैं, जो चबूतरे के नीचे रखे गए हैं। इसके अलावा, पुरातत्त्ववेत्ताओं ने तीर्थस्थल से मिले मूर्ति फलकों में भगवान विष्णु की मूर्ति का उल्लेख किया है। इस विवरण से पता चलता है कि इस स्थान पर प्राचीन काल में भगवान विष्णु का एक बड़ा मन्दिर बनाया गया होगा। यह तीर्थ सरस्वती नदी के सुंदर तट पर स्थित है, जहां कुछ पुरातत्त्वविद् महाभारत काल से संबंधित मृदशाण्डीय संस्कृति के अवशेष देखते हैं। तीर्थ के पश्चिम की ओर स्थित जोगनाखड़ा नामक गाँव के पुरातात्विक उत्खनन में हड़प्पा कालीन और धूसर वित्रित्त मृदभाण्डीय संस्कृति के अवशेष पाए गए हैं। इन सबूतों से यह तीर्थ बहुत पुराना है।
धर्मयुद्ध का साक्षी: भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन की गीता अद्भुत संवाद
इसी स्थान पर महाभारत में कौरवों और पाण्डवों के बीच हुआ धर्मयुद्ध हुआ था। लौकिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत की शुरुआत से पहले, भगवान श्रीकृष्ण ने ज्योतिसर पर अर्जुन को गीता का दिव्य सन्देश देकर उसे कर्तव्य की ओर प्रेरित किया था। अक्षय वट अभी इसके तट पर है। श्वेत संगमरमर से बना कृष्ण-अर्जुन का रथ आसपास है। लोकमान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने इसी पावन स्थान पर श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन किया था।
ज्योतिसर: धार्मिकता और पर्यटन का अद्वितीय संगम
इस तीर्थ के जीर्णोद्धार में कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के प्रयास सराहनीय रहे हैं। इसके जीर्णोद्धार पर बोर्ड ने अब तक 16 लाख 50 हजार रुपये खर्च किए हैं। बोर्ड तीर्थ के पुनर्निर्माण एवं उसे अधिक विकसित स्वरूप देने की दिशा में निरन्तर प्रयासरत है। अब यह व्यवस्था भी कर दी गई है कि इस सरोवर में यात्रियों को स्नान हेतु नरवाना नहर से निरन्तर शुद्ध एवं ताजा जल उपलब्ध होता रहे । हरियाणा पर्यटन ने ज्योतिसर में पेहवा मार्ग पर जल-पान गृह के साथ-साथ तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए एक विश्रामगृह का भी निर्माण किया है।
यहां हर साल शीत ऋतु में मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी से 18 दिनों तक गीता जयन्ती का उत्सव मनाया जाता है। सूर्यग्रहण के अवसर पर भी तीर्थयात्री यहां पूजा करते हैं। गीता जैसे ज्ञान के प्रकाशक ज्योतिसर का पवित्र स्थान धन्य है।
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